खण्डवा में अरुण कांग्रेस से तो हर्षवर्धन भाजपा के मैदान में

भोपाल।

खण्डवा लोकसभा उप चुनाव ने दावेदारों की स्थिति साफ होती जा रही है। संकेत हैं कि यहां कांग्रेस के ओर से अरुण यादव और भाजपा की ओर से स्वर्गीय नंदू भैया के पुत्र हर्षवर्धन सिंह चौहान के नामों पर सहमति बनती जा रही है। भाजपा और कांग्रेस जल्दी ही प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर देगी। प्रत्याशी चयन के संदर्भ में फीडबैक लेने के लिए खुद विष्णु दत्त शर्मा ने खंडवा का प्रवास किया। सूत्रों के अनुसार पार्टी का बढ़ा वर्ग हर्षवर्धन सिंह चौहान के पक्ष में है। विष्णु दत्त शर्मा ने अपने प्रवास के दज्ञैरान भले ही यह बयान दिया हो कि भाजपा परिवारवाद के आधार पर टिकट नहीं देती लेकिन उन्हें अधिकांश स्थानीय नेताओं ने हर्षवर्धन सिंह चौहान का नाम ही सुझाया है। वैसे भी भाजपा का प्रादेशिक नेतृत्व हर्षवर्धन ङ्क्षसह चौहान के नाम पर सहमति बनाने के प्रयास में है। इसी वजह से एक अन्य दावेदार पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस को प्रदेश प्रवक्ता की जवाबदारी दी गई है। इससे साफ है कि उन्हें दौड़ से बाहर कर दिया गया है। हालांकि अर्चना चिटनीस इसके बावजूद प्रयास कर रही हैं और उनके समर्थकों को आश है कि टिकट दीदी को ही मिलेगा। इधर कांग्रेस में सुरेंद्र सिंह शेरा लगभग निष्क्रिय दिखाई दे रहे हैं। जबकि अरुण यादव जोश खरोश के साथ सक्रिय हैं। यादव की बॉडी लैंग्वेज और उनके बयानों से स्पष्ट है कि प्रदेश अध्यक्ष कमल नाथ ने उन्हें टिकट देने के संकेत दे दिए हैं। अरुण यादव के आलाकमान में तगड़े संबंध हैं। इस कारण भी उन्हें अपने टिकट पर पूरा विश्वास है। अरुण यादव केक चुनाव की कमान उनके अनुज विधायक सचिन यादव ने संभाल ली है। यादव सुनियोजित तरीके से चुनाव प्रचार कर रहे हैं और भाजपा के खिलाफ आदिवासी विरोधी और महंगाई का मुद्दा उठा रहे हैं। अरुण यादव खण्डवा से तीन बार लोकसभा का चुनाव लड़े हैं। 2009 में उन्होंने स्वर्गीय नंदू भैया को पराजित कर यह सीट जीती थी। तब उन्हें केंद्र में कृषि राज्यमंत्री भी बनाया गया था। अरुण यादव का मुकाबला यदि हर्षवर्धन सिंह चौहान से होता है तो यहां दिलचस्प समीकरण देखने को मिलेंगे, क्योंकि एक तरफ अनेक चुनाव लड़ चुके और बड़े-बड़े पदों पर रह चुके अरुण यादव हैं तो दूसरी ओर पहली बार कोई चुनाव लड़ रहे अनुभवहीन हर्षवर्धन सिंह चौहान। खण्डवा लोकसभा की सीट भाजपा की गढ़ बन चुकी है। 1989 के बाद भाजपा केवल दो बार हारी है। 1991 में महेंद्र सिंह ठाकुर जीते थे जबकि 2009 में अरुण यादव इन दो पराजयों के अलावा भाजपा ने यहां सात बार जीत हासिल की है। छ: बार तो स्वर्गीय नंदू भैया ही जीते थे। वैसे मालवा निमाड़ अंचल में अधिक जातिवाद चलता नही है लेकिन फिर भी यदि आंकलन किया जाए तो जातिगत समीकरण भाजपा के पक्ष में हैं। स्वर्गीय नंदू भैया के कारण यदि हर्षवर्धन सिंह चौहान को टिकट मिलता है तो उन्हें यहां के करीब एक लाख ठाकुर मतदाताओं का समर्थन मिलेगा। नंदू भैया गुर्जर मतदाताओं में भी लोकप्रिय थे इस कारण यहां के 60 हजार गुर्जर मतदताओं का समर्थन भी हर्षवर्धन सिंह चौहान को मिल सकता है। खण्डवा लोकसभा क्षेत्र में एक लाख से अधिक आदिवासी मतदाता इनमें भी समदाय की संख्या सबसे कम है जो कि कांग्रेस का मतदाता माना जाता है। कोरकू, बारेला ओर भिलाला आदिवासियों की संख्या यहां अधिक है जो भाजपा के समर्थक माने जाते हैं। यहां की नेपानगर, बागली और पंधाना आदिवासी सीट पर भाजपा के विधायक काबिज हैं। इसलिए आदिवासियों का समर्थन भी भाजपा के साथ रहेगा। बाजीराव पेशवा की समाधि का सौंदर्यीकरण और जीर्णोद्धार करके भाजपा खण्डवा लोसकसभा क्षेत्र के 50 हजार मतदाताओं को भी रिझाने का प्रयास कर रही है। हालांकि चुनाव मैदान में जातिगत समीकरणों पर कई बार मुद्दे हावी हो जाते हैं। यदि कांग्रेस ने महंगाई का मुद्दा जोर-शोर से उठा दिया जैसा कि अरुण यादव कर रहे हैं तो भाजपा के लिए मुश्किल हो सकती है। खण्डवा लोकसभा क्षेत्र में यादव मतदताओं की संख्या कम है इसलिए अरुण यादव को अपने व्यक्गित जनाधार और कद का उपयोग कर चुनाव जीतने की कोशिश करनी होगी।

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