विश्वमित्र व वशिष्ठ के बीच श्रीराम ने रामत्व की स्थापना की
देहरादून
जीवन पथ में जब श्रीराम केन्द्र होते हैं, तो राग, द्वैष ईर्ष्या जीवन से निकल जाता है। विश्वामित्र जी के ह्रदय में कामधेनु गाय की पुत्री नंदिनी को पाने की इच्छा मात्र तब तक ही रही, जब तक उनका लक्ष्य राम नहीं हो गये। वशिष्ठ ने भी नंदिनी को इसलिए देने को मना कर दिया था कि वस्तुत: राजा के पास यदि नंदिनी रहेगी तो फिर राजा निष्क्रिय हो जायेगा। गीता भवन में चल रही कथा में स्वामी मैथिलीशरण ने कहा कि यदि बिना पुरुषार्थ के ही सब कुछ पाना चाहेगा, तो समाज भी निष्क्रिय और दीनता की भावना से ग्रस्त हो जायेगा। पर जब उन्हीं विश्वामित्र ने अयोध्या आकर अपने यज्ञ की रक्षा के लिए राम को मांगा तो वशिष्ठ ने सूर्यवंश पुरोहित होते हुए भी उसमें अवरोध न डालकर महाराज दशरथ को कहकर विश्वामित्र की इच्छा में इसलिए सहयोग किया कि श्रीराम का तो केवल सदुपयोग ही हो सकता है, राम का दुरुपयोग नहीं हो सकता है।