आयोग के रेकॉर्ड को बनाया आधार, उद्धव को नहीं था अधिकार

महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने बुधवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाला शिवसेना गुट वैध है क्योंकि उन्हें पार्टी के बहुमत विधायकों का समर्थन प्राप्त है। उन्होंने यह भी फैसला सुनाया कि शिंदे गुट के विधायकों को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि तत्कालीन शिवसेना के मुख्य सचेतक सुनील प्रभु के पास विधानमंडल की बैठक बुलाने का कोई अधिकार नहीं था। अपना आदेश सुनाते हुए स्पीकर राहुल नार्वेकर ने कहा कि शिवसेना के 1999 के संविधान को ध्यान में रखना होगा क्योंकि 2018 का संशोधित संविधान चुनाव आयोग के समक्ष नहीं रखा गया था।

इस मामले की जड़ें जून 2022 से जु़ड़ी हैं, जब एकनाथ शिंदे और लगभग 40 विधायकों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत कर दी थी। परिणामस्वरूप शिवसेना में विभाजन हो गया। महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट के बीच रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का दौर भी देखने को मिला। एक हफ्ते से अधिक समय तक बागी विधायक गुजरात के सूरत से असम के गुवाहाटी की रिसॉर्ट में ठहरते नजर आए। शिंदे ने अंततः भाजपा से हाथ मिला लिया। शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार गिर गई। शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया गया जबकि भाजपा के देवेन्द्र फडणवीस को उपमुख्यमंत्री पद पर संतोष करना पड़ा। महीनों बाद, अजित पवार और एनसीपी विधायकों के एक वर्ग के सरकार में शामिल होने के बाद महाराष्ट्र को एक और डिप्टी सीएम मिला।

शिंदे के विद्रोह के बाद, उद्धव ठाकरे खेमे ने कोपरी-पचपखाड़ी विधायक को सेना के विधायक दल के नेता पद से हटाने का प्रस्ताव पारित किया। सुनील प्रभु को मुख्य सचेतक नियुक्त किया गया। कुछ घंटों बाद, प्रतिद्वंद्वी खेमे ने एक प्रस्ताव पारित कर शिंदे को विधायक दल का प्रमुख घोषित किया और भरतशेत गोगावले को मुख्य सचेतक नियुक्त किया। सेना-भाजपा सरकार के गठन के बाद नए अध्यक्ष चुने गए नार्वेकर ने गोगावले को सेना के मुख्य सचेतक के रूप में मान्यता दी थी। इसके बाद, उद्धव खेमे ने प्रतिद्वंद्वी सेना खेमे के 40 विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिका दायर की। बदले में शिंदे गुट ने उद्धव खेमे के 14 विधायकों के खिलाफ याचिका दायर की।

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