पूर्वांचलवासियों का छठ महापर्व कल से, घाटों को व्यवस्थित करने जुटी टीम

कोरबा।

आस्था और सात्विक महत्व का चार दिवसीय महापर्व छठ की आराधना 8 नवंबर से शुरू हो जाएगी। इस पर्व को पूरा करने वाले परिवार जहां शुद्धता का ख्याल रखेंगे, वहीं नदी-तालाबों में अघ्र्य देने भी जा सकेंगे। कोविड महामारी के कारण बीते साल उपासक अपने अपने? घरों में ही इस पूजा की विधि पूरा किए थे, लेकिन इस बार नदी-तालाबों के साथ निर्धारित छठ घाटों पर सपरिवार उत्साह के साथ पहुंचकर पूजा करते नजर आएंगे।
छठ पूजा का महत्व अब धीरे-धीरे स्थानीय लोगों में भी बढ़ता जा रहा है। इसलिए पूजा करने वालों की भीड़ घाटों पर साल दर साल बढ़ती ही जा रही है। पूर्वांचल के लोग किसी न किसी मनोकामना के लिए इस कठिन व्रत का विधान करते हैं। इसमें किसी की मनोकामना पूरी हुई रहती है तो कोई मनोकामना पूरी होने के लिए करते हैं। शनिवार सुबह से ही छठ घाटों की साफ. सफाई शुरू हो गई है। छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं। पौराणिक मान्यता है कि भगवान श्रीराम के अयोध्या आने के बाद माता सीता के साथ कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्योपासना की थी।
इसके अलावा महाभारत काल में कुंती द्वारा विवाह से पूर्व सूर्योपासना से पुत्र की प्राप्ति को भी इससे जोड़ते हैं। पूर्वांचल विकास समिति के वेद प्रकाश यादव ने बताया कि इस बार छठ पर्व की शुरुआत 8 नवंबर को नहाय खाय के साथ हो रहा है। पूजा संपन्न होने तक हर पूजक परिवार में सात्विक धर्म का पालन शुरू हो जाएगा, जो अंतिम दिवस सुबह के अघ्र्य के साथ पूरा होगा। इस दौरान किसी भी तरह की अशुद्धता से परिजन दूर रहेंगे। इस दिन व्रती महिलाएं स्नान ध्यान कर सेंधा नमक युक्त अरवा चावल, चने की दाल व लौकी की सब्जी भोजन के रूप में ग्रहण करेंगी।
बीते साल कोरोना महामारी के कारण शहर समेत उपनगरों के छठ घाटों पर उपासकों की भीड़ नहीं पहुंच पाई थी, लेकिन इस बार स्थिति सामान्य होने के कारण छठ घाटों पर तैयारियां शुरू हो गई हैं। इसके कारण उपासक परिवारों के साथ श्रद्धालुओं की भीड़ पहुंचेगी। सर्वाधिक भीड़ ढेंगुरनाला, सर्वमंगला मंदिर हसदेव नदी, मानिकपुर पोखरी, मुड़ापार तालाब, अय्यप्पा मंदिर सुभाष ब्लाक, राम मंदिर बालको समेत उपनगर दर्री, कटघोरा, बांकीमोंगरा, दीपका, कुसमुंडा में रहेगी।

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