रामायण  मर्यादित समाज व आत्म संयम , परिवार व समाज निर्माण की शिक्षा देता है:महापौर

लखनऊ,
राजधानी में महापौर ने परिवर्तन चौक स्थित वाल्मीकि  की मूर्ति पर बुधवार को माल्यार्पण कर उनको नमन किया। इस अवसर पर महर्षि वाल्मीकि शोभायात्रा आयोजन समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम में माहापौर ने कहा कि भारत ऋषि-मुनियों और संतों तथा महान पुरुषों का देश है। भारत की भूमि पर अनेक महावीरों  ने जन्म लेकर भारत की भूमि को गौरवान्वित किया है। भारत की विद्वता इसी बात से सिद्ध होती है कि भारत को सोने की चिड़िया और विश्व गुरु आदि नाम से भी जाना जाता है। यही कारण है कि भारत की शिक्षा, ज्ञान का अनुकरण देश-विदेश में किया जाता रहा है। आदिकाल से ही भारत भूमि पर ऐसे महाकाव्य अथवा ग्रंथों की रचना हुई है, जिसका कोई सानी नहीं है तथा उसके समानांतर कोई साहित्य भी नहीं है।
महापौर ने आगे कहा कि महर्षि वाल्मीकि भी एक विद्वान पंडित के रूप में प्रतिष्ठित हैं। जिन्हें अकस्मात ज्ञान की देवी सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है और संस्कृत के श्लोक उनके जिह्वा से प्रस्फुट होने लगती है। ब्रह्मा के आग्रह पर बाल्मीकि मयार्दा पुरुषोत्तम राम के जीवन से जुड़ा महाकाव्य लिखने के लिए प्रेरित होते हैं। उन्होंने संस्कृत के श्लोकों से रामायण नामक ग्रंथ की रचना की जो देश ही नहीं अपितु विदेश में भी पढ़ा जाता है।महापौर ने आगे कहा कि रामायण  मर्यादित समाज व आत्म संयम , परिवार व समाज निर्माण आदि की शिक्षा देता है। राम चरित्र मानस  राम के जीवन का महाकाव्य है। राम अवतारी पुरुष होते हुए भी अपनी मयार्दा का कभी उल्लंघन नहीं करते। शक्ति संपन्न होते हुए भी अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कभी नहीं करते। इस अवसर पर महापौर संग जगदीश वाल्मीकि ,नरेश वाल्मीकि ,अभिषेक दीवान,वाल्मीकि  सहित अन्य लोग उपस्थित रहे।

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