राजधानी में प्रथम आगमन पर जैनाचार्य विमर्श सागर मुनिराज का हुआ भव्य स्वागत
लखनऊ
बाराबंकी और महमूदाबाद में प्रभावना पूर्ण चातुर्मास संपन्न करने के बाद रविवार को राजधानी में प्रथम बार दिगंबर जैनाचार्य भावलिंगी संत श्रमणाचार्य 108 विमर्श सागर जी मुनिराज का मंगल पदार्पण इन्दिरा नगर जैन मन्दिर मे हुआ। गाजेबाजे, पुष्प वर्षा के साथ प्रवेश हुआ। आचार्य श्री व 26 पीछीधारी संतो के मन्दिर पहुंचने पर मन्दिर के अध्यक्ष अनूप जैन, मंत्री अभिषेक जैन, अनुरोध जैन, शशि, अर्पणा, रोहित जैन, सुदीप जैन, श्रवण जैन, अरविन्द जैन, रिषभ जैन, अक्षत जैन आदि लोगों ने जोरदार स्वागत किया।
बाद मे आचार्य श्री ने प्रवचन मे कहा कि धन को आपस में बांटा जा सकता है, धन हमेशा से आपस में हमें बाटता आया है। धन ने तो महापुरुषों तक आपस में बांटा है किंतु धर्म कभी भी आपस में किसी को बांटता नहीं है
उन्होंने कहा कि धन ने तीर्थो के पुत्र भरत चक्रवर्ती और कामदेव बाहुबली जो परस्पर सगे भाई थे। उन्हें भी धन के लिए आपस में बांटना पड़ा। किंतु जिस वक्त बाहुबली ने संसार से वैराग्य धारण कर कल्याण मार्ग को स्वीकार किया तो वह वही मार्ग था जो भगवान आदिनाथ ने स्वीकारा था और जब भरत चक्रवर्ती को वैराग्य जागा तब उन्होंने भी वही मार्ग स्वीकार किया
मंत्री अभिषेक जैन ने बताया कि आचार्य श्री 24 फरवरी तक मंदिर में विराजमान रहेंगे। प्रतिदिन सुबह 9:00 बजे प्रवचन होगा। शाम को 6:30 बजे गुरुभक्ति होगी।