सरकार की मदद के बाद भी कर्मचारी लापरवाह

गोरखपुर

कोरोना महामारी के इस आपदा में सरकारी और निजी अस्पतालों में भर्ती होना लग रहा है कि गुनाह हो गया है।सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था तो और भी बिगड़ी हुई है।अव्यवस्था, भ्रष्टाचार का तो बोलबाला हो गया है। कोविड मरीजों को लेकर उनके परिजन मारे मारे फिर रहे हैं। एक सरकारी कोविड अस्पताल में भर्ती मरीज ने बताया कि तीन सौ रुपये में 15 बोतल पानी  मंगाते थे तो उसे वार्ड तक पहुंचाने के लिए अलग से चार सौ रुपये देने पड़ते थे। दवाएं तक उनके पास दूर से ही फेंक दी जाती थी। भाप की कौन कहे, गर्म पानी ही नहीं मिलता था। सरकार को व्यवस्था गुलाबी दिखायी जाती है लेकिन हकीकत यह है कि अस्पताल में ही जान के लाले पड़ गए थे। एक मरीज ने बताया कि सरकारी अस्पताल में पांच दिन का उन्हें ऐसा अनुभव मिला कि अब वह सरकार को पूरी हकीकत बताना चाहते हैं। कहते हैं कि, सब कुछ सरकार को पता चलेगा तो वह व्यवस्था ठीक जरूर करेगी। उन्होंंने बताया कि 13 अप्रैल को उनकी मां , पत्नी , भाई , भाभी को बुखार के साथ खांसी आनी शुरू हुई। 14 अप्रैल को सभी दिग्विजयनगर स्थित नगरीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कोरोना की जांच कराने पहुंचे लेकिन लाइन लगाने के बाद पता चला कि किट खत्म हो गई। अगले दिन फिर लाइन में लगे पर जांच नहीं हो सकी। 16 अप्रैल को जांच में वे, उनकी मां और भाभी में कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई तो सभी घर में आइसोलेट हो गए। उनको उम्मीद थी कि स्वास्थ्य विभाग के लोग आकर दवा देंगे पर कोई नहीं आया। 18 अप्रैल को हालत बिगड़ती तो एंबुलेंस सेवा को फोन किया। दो एंबुलेंस से तीनों को टीबी अस्पताल ले जाया गया। वहां अंदर जाते ही कर्मचारियों की फटकार से उनको बुरा अनुभव मिलना शुरू हुआ। इसके बाद इलाज से लगायत दवा तक में दिक्कत हुई। गंदगी इतनी कि शौचालय भी नहीं जा पाते थे। पानी तो मिलता ही नहीं था। मरीज बताते हैं कि डाक्टर ने लगातार तीन दिन तक एक्सरे कराने की सलाह दी। लेकिन कर्मचारी उन्हें लेकर गए ही नहीं। दबाव बनाया तो बोले कि खुद चलकर नीचे आओ। हालात यह थी कि एक कदम चलने में ही सांस फूल जाती थी तो सीढिय़ों से नीचे उतरना और फिर ऊपर चढऩा संभव ही नहीं था। उन्होंने कहा कि व्यवस्था पर सरकार खर्च करने में कोई कमी नहीं कर रही है लेकिन कर्मचारी अपना काम सही से नहीं कर रहे हैं। यही वजह है कि उन्हें नर्सिंग होम जाना पड़ा। गोरखपुर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का शहर है लेकिन यहां सरकारी हो या निजी कोविड अस्पताल हर जगह सिर्फ अव्यस्था और लूट मची हुई है। हर ओर सिर्फ मरीजो के परिजनों से कितना धन चूस लिया जाये यही क्रम चल रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *