सरकार और प्रशासन की मंशा ब्लैकमेलर उमेश कुमार को बचाने की तो नहीं

प्रदेश के चर्चित ब्लैकमेलर उमेश कुमार की गिरफ़्तारी अक्टूबर 2018 में उसके घर ग़ाज़ियाबाद से हुई थी। गिरफ़्तारी के दौरान उत्तराखंड पुलिस को 2000 GB डेटा से भी ज़्यादा की स्टिंग फ़ुटेज मिली थी। यह सारा डेटा पुलिस ने सील करके विधि विज्ञान प्रयोगशाला हैदराबाद भेजा था। जहाँ से 2019 दिसंबर में पुलिस को डेटा प्राप्त हो गया था लेकिन बावजूद इसके उत्तराखंड पुलिस द्वारा अब तक इन स्टिंग ऑपरेशनों की जाँच नहीं हुई है क्यों? उमेश के ख़िलाफ़ दर्ज मुक़दमे मैं शिकायतकर्ता द्वारा यह स्पष्ट रूप से बताया गया था कि कई लोगों को ब्लैकमेल करने की नीयत से समाचार प्लस स्टिंग ऑपरेशन करता था। नोट बंदी से लेकर कई राजनेता ब्यूरोक्रेट और कॉर्पोरेट जगत के स्टिंग ऑपरेशन उमेश कुमार की लाइब्रेरी में मौजूद थे। माना जाता है इन स्टिंग ऑपरेशन को जब जहा जैसे ज़रूरत के हिसाब से इस्तेमाल किया जाता था और इससे पैसे की उगाही की जाती थी। उमेश कुमार का रुतबा इतना बड़ा था कि सेंटर द्वारा उसे yप्लस कैटेगरी सुरक्षा मिली हुई थी जिसके कारण कोई भी पुलिस वाला यह थानेदार उसकी रिपोर्ट तक दर्ज नहीं करता था यही वजह थी कि उमेश कुमार का अपराध दिन प्रतिदिन चक्रवर्ती ब्याज की तरह बढ़ता जा रहा था। अब जब सारा मामला खुल चुका है बावजूद इसके प्रशासन द्वारा इन स्टिंग ऑपरेशन की जाँच अब तक शुरू नहीं हुई है। एक ख़ास सूत्रों की मानें तो उत्तराखंड के एक वरिष्ठ IPS उमेश कुमार एंड कम्पनी की मदद कर रहे हैं सुनने में यह भी आया है कि इन्हीं अधिकारी के सहीयोग से उमेश की पत्नी सोनिया को सुरक्षा मुहैया कराई गई। जानकारों का यह भी मानना है कि अगर इस स्टिंग का जिन्न खुला तो बोहोत दबी हुई फ़ाइलें बाहर आ जाएगी जिन के एवज़ में अरबों का लेन देन हो चुका है। दरअसल उमेश कुमार का वर्किंग मॉड्यूल यही है पहले नेताओं से क़रीबी बनाना उनके साथ उठना बैठना उनके माध्यम से मुनाफ़ा कमाना और उनका स्टिंग ऑपरेशन कर अपने पास रख लेना फिर अपने मन मर्ज़ी के हिसाब से अपने और अपने सिंडिकेट के काम करा लेना। एक बेहद ख़ास आदमी ने बताया कि उमेश कुमार प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से कई रिजॉर्ट्स में पार्टनरशिप रखता है उन्हें कई तरह के प्रोटेक्शन भी देता है और इन रिजॉर्ट्स में कुछ कमरों में हिडन कैमरा लगाकर रखता है साथ ही बड़े बड़े VIP लोगो को पार्टी देने के बहाने बुलाता है और वहाँ कॉल गर्ल्स को बुलवाकर अधिकारियों को परोसता है जिसका वीडियो बनाकर अपनी लाइब्रेरी में रख लेता है और उसके बाद ये अधिकारी सारी ज़िंदगी इसके दबाव में आकर काम करते हैं। हरीश रावत प्रकरण में भी उमेश कुमार ने एक बड़ा षड्यंत्र रचा था। सोचने वाली बात है कि देश के कई लाख पत्रकारों में हरीश रावत उमेश कुमार से ही जोड़ तोड़ की बात क्यों कर रहे थे। यही वजह है कि CBI ने हरीश रावत के साथ साथ हरक सिंह रावत और उमेश कुमार को भी इस मामले में मुलज़िम बनाया है। CBI नई एफ़आइआर में स्पष्ट किया है कि जब उमेश कुमार अपने मंसूबों में क़ामयाब नहीं हो पाए तो हरक सिंह रावत और उमेश कुमार द्वारा षडयंत्र रच हरीश रावत का स्टिंग ऑपरेशन किया गया। (हालाँकि इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि स्टिंग ऑपरेशन में हरीश रावत और मदन बिष्ट भी दोषी पाए गए थे) जब इतनी मज़बूत तथ्य होने के बाद प्रशासन अभी भी उमेश कुमार के स्टिंग ऑपरेशन की जाँच नहीं कर रहा तो इसे एक बात साफ़ हो जाती है कि सरकार और प्रशासन की मंशा कहीं न कहीं या तो ब्लैकमेलर को बचाने की है या फिर पूरा सिस्टम उसके दबाव में है। समय आ गया है कि भारतीय जनता पार्टी द्वारा शासित देवभूमि की सरकार में इस तरह के अराजक और षडयंत्रकारी तत्वों की गंभीरता से जाँच कर इन्हें न सिर्फ़ प्रदेश से के बाहर खदेड़ा जाए बल्कि पूरे देश में ऐसे ब्लैकमेलरो के ख़िलाफ़ मुहिम चलाकर इन्हें काल कोठरी का रास्ता दिखाना चाहिए। तभी उमेश कुमार जैसे लोगों से भयभीत समाज भयमुक्त हो सकता है।

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