चोरी की हुई भैंसें आखिर कैसे पहुंची स्लाटर हाउस ?
उन्नाव,
कभी रखरखाव तो कभी मानक इन सारे बिंदुओं पर अक्सर दही चौकी में स्थापित स्लाटर हाउसों में सवाल जवाब, जांच पडताल करने अधिकारी जाया करते है। अक्सर खामियां मिलती है तो इसको जुर्माने की गर्मी से शांत कर दिया जाता है अन्यथा अधिकांशत: सब कुछ ठीक ठाक ही मिलता है। इससे ऊपर की लापरवाही मिलने पर इन स्लाटर हाउसों के पास एक बचाव का रास्ता होता है कि संबन्धित निजी जिम्मेदार या कंपनी को काली सूची में डाल दिया जाए। इससे लापरवाही बरतने वाले स्लाटरहाउस एक निजी ठेकेदार को दोषी बनाकर अपना किनारा कर लेते है और इनकी मनमानी यूंही जारी रहती है। एक ऐसा ही मामला बीते दिनों सामने आया था। मामले की गंभीरता को देखने से लग रहा था कि इस प्रकरण में निश्चित ही स्थानीय प्रशासन कोई गंभीर कदम उठाएगा। लेकिन ऐसी कोई कार्यवाही सामने देखने को नही मिली। हां इतना जरुर कि, अखबारों की सुर्खियों में देखने को मिला कि उक्त फैक्ट्री ने उक्त ठेकेदार को ब्लैक लिस्ट कर दिया है। सवाल इस बात का खडा होता है कि प्रशासन ने अपने स्तर पर क्या कार्यवाही कि जब कि स्थानीय दही थाना प्रभारी द्वारा चोरी से लाई गई भैसें इंडाग्रो स्लाटर हाउस में बरामद की गई। यह मामला तब खुला जब कि चोरी होने पर भैस मालिक ने संदेह की स्थिति में इंडाग्रो फूड्स प्रा0 लि0 के पास खडे होकर अपनी भैंस की पहचान को इंतजार करने लगा। कुछ देर बाद एक वाहन में लदी भैंसे इंडाग्रो फैक्ट्री की तरफ बढने लगती है तो युवक गाडी की तरफ लपकता है। उसके बाद वाहन को तो अंदर प्रवेश करा दिया जाता है लेकिन उस युवक को बाहर ही रोक दिया जाता है। ऐसे में युवक जब प्रशासनिक मदद लेेता है तो प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद भैंसों की बरामदगी फैक्ट्री के अंदर से कर ली जाती है। इसके बाद कार्यवाही से बचने के लिए उक्त फैक्ट्री द्वारा स्वांग रचकर ठेकेदार को ब्लैक लिस्ट करने की बात कही जाती है। इसके साथ ही गायब हुई भैस व बरामद हुई भैस के बीच की गुत्थी कुछ ऐसी उलझी की इसके आगे की तश्वीर साफ न हो सकी। जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा उक्त स्लाटर हाउस पर क्या कार्यवाही की गई यह तो जिम्मेदार अधिकारी ही जाने लेकिन इस तरह से अगर इन मामलों पर पर्दा पडता रहा तो निश्चित तौर पर प्रदेश सरकार की मंशा पर पानी अवश्य फिरता नजर आएगा।